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कहीं आपका बच्चा भी स्मार्ट फोन पर गेम तो नहीं खेलता? सावधान !

Effects of mobile phones on kids

 मोबाइल फोन आज एक ऐसा गैजेट बन चुका है जो दुनिया की लगभग पूरी आबादी के पास उपलब्द्ध है। लेकिन इस गैजेट का बच्चों पर कितना हानिकारक प्रभाव पड़ता है इसके बारे में हम आज आपको बताने जा रहे हैं।


सेल फोन तो आज लगभग सभी के पास रहता ही है और लोग धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं। लेकिन हैरान कर देने वाली बात तो यह है की समाज में आज ऐसे बहुत सारे लोग देखने को मिलते हैं जो अपने बच्चों को इसमे शामिल कर लेते हैं। अपने बच्चों को स्मार्ट फोन पर गेम खेलने के लिए दे देते हैं और खुद निश्चिंत हो जाते हैं। लेकिन यह मोबाइल बच्चों को कितनी बड़ी मुसीबत डाल रहा है इसका आपलोगों को अंदाजा तक नहीं है। खैर शुरू करते हैं और सीधे मुद्दे पर आते हैं।


ब्रेन के विकास मे रुकावट
आपलोगों ने तो यह विज्ञापन देखा ही होगा कि 90% ब्रेन का विकास 5 साल की उम्र तक हो जाता है। लेकिन कभी ध्यान नहीं दिया होगा। हालांकि यह बात बिलकुल सही है और रिसर्च के अनुसार इसमे सच्चाई पाई गई है। लेकिन जब नन्हें बच्चे सेल फोन का इस्तेमाल करते हैं तो इनमे से निकलने वाले रेडियशन सीधे तौर पर उनके मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। इससे उनके दिमागी विकास की क्षमता पर असर पड़ता है।

शारीरिक विकास में रुकावट
आपने व्हाट्सअप पर ऐसा जोक्स जरूर पढ़ा होगा जिसमे एक डॉक्टर अपने रोगी को शारीरक गतिविधि की सलाह दे रहा होता है और उसे क्रिकेट या फूटबाल खेलने की सलाह देता है। और रोगी उसे जवाब के रूप में कहता है की वह रोजाना 3 घंटे फूटबाल खेलता है लेकिन अपने मोबाइल पर। जी हाँ, मोबाइल का अधिक उपयोग आपके बच्चे को वास्तविक दुनिया से अलग कर देता है और वह उसे एक काल्पनिक दुनिया में कैद रखता है। इससे बच्चा बाहर की दुनिया से उतना परिचित नहीं हो पाता है और अपने सारे खेल मोबाइल की मदद से करता है। सेल फोन बच्चे को शारीरक गतिविधि करने में बाधा उत्पन्न करता है।

नींद में कमी
एक रिसर्च में कुछ बच्चों को दो ग्रुप में बांटा गया और एक ग्रुप के बच्चों को सेल फोन की आदत लगाई गई। वही दूसरे ग्रुप के बच्चों को सामान्य जन-जीवन की भांति रखा गया। जब इसका निष्कर्ष निकाला गया तो यह देखने को मिला की सेल फोन इस्तेमाल करने वाले बच्चों में सामान्य बच्चों की अपेक्षा नींद में कमी हो रही है। इसका कारण यह है की मोबाइल के रेडिएशन की वजह से बच्चों के शरीर का वह अंग प्रभावित हुआ था जहां से नींद उत्पन्न करने वाले हार्मोन निकलते हैं।

मानसिक रोग
टेक्नॉलॉजी के अनियंत्रित उपयोग के कारण बच्चों में बाइपोलर डिसऑर्डर, परिवार के साथ न घुल पाना, ध्यान न लगना, डिप्रेशन, आत्महत्या जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। उदाहरण के तौर पर आपको हाल ही का बहुचर्चित ब्लू व्हेल गेम याद होगा जिसमे बच्चों को सामान्य जनजीवन से अलग कर आत्महत्या के लिए उकसाया जा रहा था।

आँखों की समस्या
खैर आप इस बात से जरूर परिचित होंगे की स्मार्ट फोन बच्चों की आँखों पर अपना दुष्प्रभाव डालते हैं। दरअसल इससे बच्चों की आँखों पर सीधा असर पड़ता है। जब बच्चे स्मार्ट फोन पर देखते हैं या गेम खेलते हैं तो वह बिना पलकें झुकाए लगातार स्क्रीन पर घूरते रहते हैं। पलकों को बार-बार न झपकाने पर ड्राई आई सिंड्रोम होने का खतरा रहता है।

शिक्षा पर प्रभाव
आजकल बच्चे स्मार्टफोन के आदी हो रहे हैं। वे अपना काफी समय गेम खेलने और चैट या सोशल मीडिया नेटवर्क पर सर्फिंग करने में बिताते हैं। मोबाइल फोन पर जरूरत से अधिक समय बिताना अनुचित चीजों पर ध्यान केंद्रित करता है और बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करता है। इसके अलावा साइंस डेली वेबसाइट के एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार सामान्य बच्चों की तुलना में सेल फोन के आदि होने वाले बच्चों में विचलित होने का खतरा लगभग 50% तक अधिक होता है।

माता-पिता के लिए सलाह
बच्चे नरम मिट्टी के उस पुतले के समान होते हैं जिन्हे ढालना काफी आसान होता है। अगर आप अपने बच्चे को सामाजिक रूप से प्रगाढ़ बनाना चाहते हैं तो कृपया कम उम्र में उन्हे मोबाइल फोन की लत न लगने दें। हाँ, अगर काफी जरूरत है तो आप एक सामान्य की-पैड वाला फोन उन्हे दे सकते हैं। उन्हे इंटरनेट की सुविधा से लैस फोन देने की गलती न करें। इंटरनेट की सुविधा से लैस फोन, बच्चों को न केवल शारीरक रूप से परेशान करते हैं बल्कि यह उनके मानसिक तनाव का भी एक कारण बन जाता है। आय दिन साइबर धमकी, मैसेज और फोन काल आने की रिपोर्ट दर्ज की जा रही है। आप इनके मैसेज और फोन कॉल का ट्रैक जरूर रखें और हाँ अगर संभव हो तो कोचीन और स्कूल के कांटैक्ट नंबर खुद अपने पास रखें और व्यक्तिगत रूप से जाकर बीच-बीच में निगरानी करें। 

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